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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 15)









वह काली कार पूरी रफ्तार से सड़क पर सरपट दौड़ रही थी, अब सुबह होने ही वाली थी। हल्का हल्का प्रकाश का आना शुरू हो चुका था। ड्राइविंग सीट के बगल में अनि सीट से चिपककर आराम से लेटा हुआ था, अरुण अपने ड्राइविंग स्किल्स का प्रयोग करते हुए, कार बहुत अधिक तेज गति से चला रहा था। कार की स्पीड इतनी अधिक थी कि खूब लम्बी सड़क पर भी पलक झपकने भर की देरी में आँखों से ओझल हो जाती।

'हाँ! हाँ! जानता हूँ क्या सोच रहे हो? यही न कि कल तक तो आपका प्यारा हनी बनी अनि यानी मैं इसे ही विलन मानता था मगर आज हीरो समझकर इसकी बगल वाली सीट पर क्या कर रहा हूँ? दशमलव बात ऐसी है कि पिछले ही दिन पहले जो हादसा हुआ था उससे भी बहुत बड़ा हादसा हुआ, उन मासूमों पर इतनी क्रूरता दिखाई गई उफ्फ्फ! मैं ये सोचता रहा कि अरुण तो अभी पता नहीं कहाँ गायब है, फिर इसके पीछे कौन है! जब मैंने वीडियो फ़ुटेज ध्यान से देखा तो नजर आया कि कुछ लोग उस भीड़ को भड़काने में लगे हुए थे। काफी मशक्कत के बाद एक कोहिनूर मेरे हत्थे चढ़ ही गया, फिर क्या चमाट पड़ते ही अपने बाप का नाम उगल गया। नरेश रावत! यह सुनते ही मेरी जमीन के नीचे से पैर खिसक गई। रात में मौका मिलते ही मैं चोरी-चोरी चुपके-चुपके उसके घर में घुस गया। जहां मैंने उसकी लड़की यानी काव्या को सिसकते हुए देखा। पूछने पर उसने बताया कि उसके पापा कुछ दिन से जाने क्यों बहुत अधिक परेशान से रहते हैं, मेरे भेजे में एक बात कब से नही भीड़ पा रही थी कि कोई बस भाषण देने के लिए इतनी बुरी तरीके से बच्चों को तो नहीं मारने वाला, और काव्या के मुताबिक वह परेशान भी रहता है। भला कोई अपनी जीत की खुशी में परेशान क्यों रहेगा?

सिंपल सी बात है यार वो उसकी जीत नहीं है, बस कोई जानबूझकर कर दिखाने में घुसा पड़ा है कि उसकी जीत है जबकि ऐसा नहीं है। अचानक ही मेरा ध्यान उसकी गर्दन के जख्म के निशान पर पड़ा, उसने बताया कि उसे भी याद नही, कुछ दिन पहले की बात है वह बस बेहोश हुई थी, होश में आई तो ये कट लगा हुआ था, इसपर उसका ध्यान नहीं गया। पर उसे बच्चों की मौत का बहुत बुरा लग रहा थ इसलिए वह अकेले बैठकर रो रही थी, उसके मुताबिक उसके पप्पा को इस टाइम तक आ जाना चाहिए था मगर वो तो न जाने कहाँ भिड़े हुए है।

जैसे ही मैंने गौर से उठा घाव को देखा, इतना तो मैं समझ गया कि यह घाव ऐसे ही नही बना है, इसे बनाया गया है, इसमें कुछ न कुछ लोचा जरूर है, मेरे इस एंड्रॉयड के स्पेशल फीचर ने दिखा दिया कि उसके बॉडी में बम है।

उड़ी बाबा बम!

हाँ! वो भी माइक्रो बम, रिमोट से कंट्रोल किया जाने वाला। मैं समझ गया कि नरेश को ब्लैकमेल किया जा रहा है, तभी ये सज्जन, मेरा मतलब जो बिल्कुल भी सज्जन नहीं है वो नरेश को नर्स के पास भेजने की तैयारी कर लिए.. फिर क्या आगे की कहानी आपको पता ही है, हम समझाए, मनाए, खाली स्थान भैया का पिलान फेल किये और अब उनका खाली स्थान भरने जा रहे हैं।

चीफ के अब भी यही आर्डर हैं कि अरुण से दूर रहो मगर हमसे ये ना होगा, देखो कितना मासूम सोडा है, लड़की पर पिस्तौल भी ताना तो मैगज़ीन निकाल के, और बाकी हमारा तेल निकाल दिया उसका क्या? हाँ! मिस प्याऊ, पप्पा जी के पास खुश है मगर वे दोनों हमसे नासाज हैं। अब पहले खाली स्थान भैया की तबियत दुरुस्त करके उनको भी मनाना पड़ेगा। क्या जिंदगी है यार??'

"ओये! क्या तुम सपने में भी ऐसे बड़बड़ाते ही रहते हो?" अरुण उसपर झल्लाया।

"सपना? ये कौन है भला? तुम्हें किसी ने बताया नहीं कि मैं बालब्रह्मचारी हूँ।" अनि आंखे फाड़े चारों ओर देखने लगा। "मैं किसी सपना वपना को नहीं जानता हाँ!" अनि ने मुँह बनाया।

"मेरे सामने ये फ़िज़ूल की बकवास हरकते मत करना मिस्टर अनि!" अरुण गुर्राया। उसके तमतमाते चेहरे को देखकर साफ जाहिर हो रहा था कि उसे अनि की हरकतें बिल्कुल भी पंसद नही आ रही थीं।

"ठीक है! नहीं करेंगे। जो आपको नहीं पसन्द हम वो बिल्कुल नहीं करेंगे।" कहते हुए अनि सीट पर फैलकर पसर गया।

'क्या इंसान है यार! इसको मिशन पर कौन गधा भेज दिया। जिसे खुद को संभालना आता नही…वो मिशन क्या खाक संभालेगा!' अरुण मन ही मन बुदबुदाया।

"आप कुछ कहा क्या भैय्या?" अनि हड़बड़ाकर उठते हुए बोला।

"हाँ!" अरुण उसकी आँखों में आँखे डालते हुए बोला। "नीचे उतरो! अभी के अभी।" क्रिच्च के स्वर के साथ कार रुकी, अरुण ने अनि को गेट की ओर इशारा किया। "उतरो..!"

"क्या मजाक है भैय्या, अभी अभी तो आप हमारी तारीख किये थे, अब सुनसान रास्ते पर अकेले छोड़ रहे है! हमारे साथ कोई हादसा हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा! आपको हमारी कोई बात बुरी लगी हो तो नाक पकड़ उठक-बैठक कर लेंगे मगर हम पर ये जुल्मों सितम तो न करो।" अनि किसी छोटे बच्चे की नाराज होता हुआ बोला।

"घर जाकर सो जाओ बच्चे! अरुण उन सभी के लिए काफी है, और हाँ मदद के लिए शुक्रिया!" अरुण ने उसकी बातों को अनसुना करते हुए सपाट लहजे में कहा, अनि को न चाहते हुए भी कार से उतरना पड़ा। अनि के उतरते ही वह तेजी से आगे बढ़ गया।

'क्या आदमी है यार! चीफ सही बोलता था मगर अब इन अचारों का क्या करूँ, पहले आये होते तो मूड इतना खट्टा नहीं हुआ होता। अकड़ू कहीं का? और सब मुझ मासूम को बोलते हैं उनका दिमाग खराब करता हूँ।' अनि सड़क के किनारे फैल गया, अचानक उसके होंठो पर मुस्कान तैर गयी। थोड़ी ही देर में वातावरण पुलिस के सायरनो से भर गया। ऐसा लग रहा था मानो पूरी की पूरी पुलिस फ़ोर्स इसी हो चली आ रही हो। कुछ ही मिनटों बाद अनि को एक के बाद एक कई पुलिस वैन वहां से गुजरती हुई दिखी।

"रोको रोको..! अरे कोई सवारी तो ले लो।" अनि दोनों हाथ लहराते हुए बोला। मगर किसी ने भी उसपर ध्यान नहीं दिया। "ये क्या यार! अपनी तो कोई वैल्यू ही नहीं रही अब जमाने में.. तुमने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, मेरा दांत दुखाने में।"

'तुम्हें क्या लगा कि मैं दिल दुखाने में कहूंगा! हो जाओ आशिक़, सारे के सारे आशिक़। अबे दाँत भी दर्द करता है तुमको नहीं पता। मुझे पता है तुम भी मेरी तरह यहीं सोच रहे हो न कि उस ओर तो वो भूतही काली इमारत है, जिसका पता हमको नरेश ने दिया था। तो पुलिस को उसका पता कैसे चला? दिमाग फिर रहा है न मेरी तरह..! बट फ़िकर नॉट! अनि इज़ हिअर, डोंट वरी डीयर। अब तो अपनी सवारी बुलानी ही होगी।'

"अबे ये खटारा कौन मेरे दुकान के सामने खड़ा करके गया है बे?" एक दुकानदार चिल्लाया, जिसे सुनकर अनि की तंद्रा भंग हुईं। उसके ठीक पीछे एक बेहद पुरानी मोटरसाइकिल खड़ी थी, जिसपर कहीं कहीं जंग लग चुका था।

"लो आ गयी सवारी!" मोटरसाइकिल देखते ही अनि की मुस्कान गायब हो गयी। "कसम से चीफ किस जनम का बदला ले रहे हो यार! ये खटारा ही मिली थी तुमको!" अगले ही पल उसके कलाई पर रिस्टवाच नजर आने लगी, मैप प्रोजेक्शन में ब्लैक बिल्डिंग थोड़ी ही दूर नजर आ रही थी। अनि मोटरसाइकिल पर सवार हुआ, बाइक स्टार्ट होते ही वातावरण में उसकी कान के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज गूँजने लगी। वह तेजी से उस ओर आगे बढ़ा।

अरुण ब्लैक बिल्डिंग के पास पहुँच चुका था मगर उसको अब तक अंदर जाने का रास्ता न मिला था, हालांकि नरेश ने उन्हें सबकुछ बताया हुआ था मगर उस स्थान पर जाने के बाद कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। वातावरण में पुलिस के सायरनो की आवाज बढ़ती ही जा रही थी, अरुण ने पीछे जाने की कोशिश की मगर कार जैसे कहीं फंस सी गयी थी। अगले ही पल बेआवाज सुरंग बनना शुरू हो गयी, अरुण अपनी पिस्तौलें तैयार कर तेजी से अंदर चला गया। अंदर पहुँचते ही वह सुरंग अपने आप ही बन हो गयी। वह चारों ओर ढूंढता फिरा मगर वहां उसे कुछ भी नहीं मिला। वहां किसी के भी होने के कोई सुबूत नहीं मिले। लाइट्स पूरी तरह ऑफ थी, ऐसा लग रहा था मानो यहां कोई बरसों से न आया हुआ हो। अचानक ही उसका मन कई आशंकाओं से घिरने लगा, उसे महसूस हुआ उसे बहुत बड़ा धोखा दिया दिया गया था।

उसने उन सीक्रेट रूम्स को तोड़ दिया मगर उनके अंदर भी कुछ न था, यहां से सबकुछ नदारद था, खेलने वाला जो भी था उसने एक भी सुबूत न छोड़े थे।

"ओह माय गॉड!" अरुण ने अपने सिर पर हाथ मारा, मारे उत्तेजना के उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। तभी उसे अपने विपरीत दिशा में एक चौड़ी पट्टी नजर आयी, जो एक दीवार के पास जाते ही खत्म हो जा रही थी। अरुण तेजी से कार की ओर भागा और  उस पट्टी पर ही उसकी अंतिम छोर की तरफ तरफ चलता गया, अगले कुछ ही पलों में उसकी कार उस दीवार से टकराने वाली थी, अरुण के पैर एक्सीलेटर पर बुरी तरह कसते जा रहे थे।

◆◆◆

बाहर पुलिस ने उस ब्लैक बिल्डिंग को पूरी तरह घेर लिया था। आदित्य और मेघना अपनी-अपनी सर्च टीम के साथ चारों ओर ढूंढ रहे थे मगर उन्हें कोई सुबूत नहीं मिले। उन्होंने उस विशाल गेट पर लगे ताले को तोड़ दिया था, उनकी गाड़ियों ने उस स्थान को चारों ओर से घेर लिया था।

सुबह हो चुकी थी, सूरज की किरणे हवाओं से छनकर धरती तक आ रहीं थी। खूब ताजी हवा मन को शांति देने वाली थी मगर सभी बुरी तरह इस खोज में जुटे हुए थे।

"टीम अल्फा टू गामा! हमें कुछ नहीं मिला शायद हमें गलत इन्फॉर्मेशन दी गयी है।" आदित्य ने वॉकी-टॉकी पर कहा।

"मुझे भी यही फीलिंग्स आ रहीं हैं आदित्य! भला कोई ऐसी खटारा बिल्डिंग में अपना सीक्रेट ठिकाना क्यों बनाएगा!" मेघना का स्वर उसकी वॉकी-टॉकी से उभरा।

"कहीं यह कोई जाल तो नहीं है? टीम अल्फा इस जगह को छोड़ दो!" आदित्य ने चिल्लाते हुए कहा।

"पर हमें ऐसा कुछ संदिग्ध भी नहीं मिला है सर! जिससे कुछ अजीब होने की आशंका हो। हो सकता है किसी ने पुलिस की फिरकी लेने की कोशिश की हो!" मुरली ने आदित्य को शांत कराने के इरादे से कहा।

"पर ऐसा जरूरी तो नहीं है न?" धरन जो कि सर्चिंग टोर्च लेकर एक कोने में तलाशी कर रहा था, बोला।

"चुप हो जाओ तुम सब! ये मेरा आर्डर है बिल्डिंग खाली करो!"  आदित्य ने चिल्लाते हुए कहा, उसका दिल भविष्य में हो सकने वाली किसी भी घटना की आशंका से कांप गया था।

"इस सर!" सब बड़ी तेजी से बाहर निकलने लगे।

"टीम अल्फा टू गामा! मेरा विचार है कि कोई सरफिरा हमारी फिरकी ले रहा था, जल्दी से बाहर निकल आओ!" आदित्य ने वॉकी-टॉकी पर सन्देश प्रसारित किया।

"ओके आदित्य तुम निकलो!   अरे यह क्या?" मेघना ने अपने सामने जो भी कुछ देखा था वह देखकर उसकी आँखें फैल गयी। उसके सामने बिल्कुल नए वायर का एक पीस पड़ा हुआ था।

'अगर यहां कोई नहीं आता है तो यह तार कैसे आया? अपने आप तो नहीं आया होगा, खबरी की बात को ऐसे ही झूठा नहीं माना जा सकता।' मेघना ने खुद से कहा।

"क्या हुआ मैम?" उधर से आदित्य की घबराई हुई आवाज आई।

"कुछ नहीं आदित्य! तुम सब बाहर निकलो मैं अभी आती हूँ।" कहते हुए मेघना ने सम्बंध विच्छेद कर दिया।

"यार ये लड़की भी न..!" अरुण झल्लाया, वह अपनी पूरी टीम के साथ बाहर आ चुका था। उस लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैली ब्लैक बिल्डिंग में उसे कुछ हासिल न हुआ था, बल्कि पल पल वह आशंकाओं से ग्रस्त हुआ जा रहा था।

तभी अनि वहां आता हुआ नजर आया। उसकी बाइक की आवाज से सभी के कान फटने लगें। आदित्य किसी तरह खुद पर संयम बनाये हुए था, उन्हें लगा कि कोई बेवकूफ होगा, वह बुरी तरह झुँझला गया, एक पल को उसका जी किया कि अभी उसका चालान काटकर आ जाये।  अनि ने अपनी बाइक दीवार के बाहर खड़ी कर दी, आदित्य ने सोचा चलो अब राहत मिली मगर अनि गेट पर खड़े पुलिसवालों को धक्का देते हुए अंदर चलता गया।

"ऐ...! कौन हो तुम?" आदित्य गुर्राया।

"मैं कौन हूँ ये मानकर कोई फायदा नहीं होगा आपको, बस इतना समझ लीजिए कि ये जगह आपके लिए खतरे से खाली नहीं है।" अनि अपने हाथ नचाते हुए बोला।

"यहां सर्चिंग की जा रही है मिस्टर! तुम जैसे बेवकूफ की किसी ने अंदर कैसे आने दिया।" आदित्य अपने आपे से बाहर हो रहा था। "मुरली-धरन, इन महानुभाव को गेट के बाहर तक छोड़ आइये, और बता दीजिए कि ये जगह बच्चों के खेलने के लिए नहीं है।"

मुरली-धरन आदित्य की बात सुनते ही अनि की ओर लपके। अनि तेजी से उनकी ओर दौड़ा, दोनों उसे पकड़ने के लिए झपटे, अनि सरकते हुए दोनों के नीचे से आदित्य के पास पहुंच गया, मुरली और धरन औंधे मुँह जा गिरे।

"मेरी बात समझो मिस्टर होशियार पुलिसवाले! आप लोगों को फंसाया गया है।" अनि ने आदित्य से कहा।

"और ये बात तुम कैसे जानते हो?" आदित्य ने अनि की ओर सवालिया निगाहों दे से देखते हुए कहा। इससे पहले अनि कोई जवाब देता ऊपर से कुछ गिरने की कड़कड़ाहट ने उनका ध्यान खींच लिया। बिल्डिंग से एक बड़ा टुकड़ा उन दोनों पर गिरने वाला था, अनि ने आदित्य को जोर से धक्का दिया, वह दूर जा गिरा। टुकड़ा ठीक वहीं गिरा जहां आदित्य खड़ा था। अगले ही पल वहां की सारी जमीन हिलने लगी, ऐसे लगा जैसे कोई भूकंप आया गया हो, मगर इस पहाड़ी क्षेत्र में भूकंप का आना सम्भव न था।

अब आदित्य को अपनी आशंकाएं सच होती हुई लगने लगीं, विस्फोटों की आवाज उनके कानों तक आ रही थी।

"सभी लोग बिल्डिंग से बाहर निकलों जल्दी! हमें किसी बहुत बड़ी साजिश में फंसाया गया है।" अगले ही पल आदित्य अपनी पूरी ताकत से चिल्लाया।

"मेघना…! हे भोलेशंकर!! वह तो भीतर ही रह गयी है।" मेघना का ख्याल आते ही आदित्य ऐसे चिहुंका जैसे वह अभी-अभी कोई बुरा सपना देखकर नींद से जगा हो।

"ये बिल्डिंग गिरने वाली है, जल्दी बाहर चलो!" अनि ने आदित्य को खींचते हुए कहा।

"तुम यहां से निकल जाओ! मेरी सीनियर ऑफिसर इसी बिल्डिंग में अंदर हैं, मुझे उनकी मदद करनी होगी।" आदित्य ने अनि को बाहर जाने का इशारा करते हुए कहा।

"मेघना!" आदित्य वॉकी-टॉकी पर चिल्लाया मगर उधर से कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला।

"क्या हुआ सर?" अनि ने प्यार से पूछा।

"तुम यहाँ दिमाग मत खाओ, क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो बाहर निकलों।" आदित्य उसे बाहर की ओर धकेलता हुआ बोला। ब्लैक बिल्डिंग बुरी तरह चरमरा कर गिरने ही वाली थी। आदित्य तेजी से भीतर की ओर भागा, अनि ने भी उसके पीछे दौड़ लगा दी। मेघना बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी मगर उसे कोई रास्ता ही समझ नहीं आ रहा था, उसके हाथ और सिर पर चोटें लगीं थी। मेघना का पूरा ध्यान दरवाजे को ढूंढने में लगा हुआ था, कमरें में चारों ओर धूल भरी हुई थी, उसका सर्चलाइट हैट भी टूट चुका था। चारों ओर से टूटने और चटकने की आवाजें आ रही थीं, मेघना की आँखों में धूल चली गयी थी, जिसे वह साफ करने की कोशिश कर रही थी, बड़े-बड़े टुकड़ो से बचने के चक्कर में वह कई छोटे टुकड़ों का शिकार बन गयी थी, उसके जिस्म पर कई जगह घाव के निशान थे, वह किसी तरह खुद को संभालना चाहती थी मगर नाकाम हो रही थी। उसके ऊपर छत का एक बड़ा टुकड़ा गिरने वाला था मगर उसका ध्यान उस ओर बिल्कुल भी न था, आदित्य ने मेघना को जोर का धक्का दिया, मेघना बड़े टुकड़े से तो बच गयी मगर एक छोटा टुकड़ा उसके पैर पर जा गिरा, वह बुरी तरह चीखीं। आदित्य ने मेघना को उस खतरनाक बड़े टुकड़े से तो बचा लिया था मगर खुद उसके स्थान पर पहुंच गया। छत का टुकड़ा उससे कुछ ही इंच दूरी पर था, वह तो अपना राम-नाम सत् समझ चुका था, उसने अपनी आँखें भींचकर बन्दकर ली। तभी अनि ने उसे अपनी ओर खींच लिया, आदित्य को अपने जीवित होने यकीन नहीं हो रहा था मगर यह वक़्त कुछ जताने दिखाने का बिल्कुल भी नहीं था, बिल्डिंग किसी भी वक़्त पूरी तरह गिर सकती थी। आदित्य ने मेघना को गोद में उठाया, छतें और दीवारें अब भी टूटकर गिर रही थी, समय के साथ ही इन टुकड़ो के गिरने की गति बढ़ती जा रहीं थी। तीनों जल्दी से बाहर निकल आये, मेघना के सिर पर हल्का सा चोट लगा हुआ था। सभी पुलिसकर्मी आदित्य और मेघना को देखते ही उनकी ओर दौड़ पड़े।

"तुमने मेरी दो-दो बार जान बचाई इसके लिए धन्यवाद मिस्टर!" आदित्य, मेघना को जिंदा पाकर बहुत खुश था, मगर अब वह बेहोश होती जा रही थी। अगले ही पल बिल्डिंग भरभरा कर ढहने लगी।

"धनबाद-ऋणबाद बाद में देखेंगे इंस्पेक्टर साहेब! अभी यहां से निकलना होगा थोड़ी ही देर में यह पूरा इलाका उड़ जाएगा।" अनि ने पूर्वानुमान लगाते हुए कहा क्योंकि नरेश ने उसे बताया हुआ था वह बिल्डिंग ऊपर से जितनी है अंदर से उससे कई गुनी बड़ी है।

"व्हाट..?" आदित्य के चेहरे पर परेशानी के भाव नज़र आने लगे।

"जल्दी करो!" कहते अनि अपनी मोटरसाइकिल की ओर बढ़ा।

"सभी लोग इस स्थान के आधे किलोमीटर के दायरे से दूर निकल जाएं तुरन्त!" आदित्य ने सभी को आदेश देते हुए कहा और मेघना को अपनी कार में बिठाया।

"चलों खाली स्थान भैय्या का ये पिलान भी हम फिलॉप कर दिए! मगर वो सनकी साहेब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।" अनि की नजरें अरुण को ढूंढ रही थी। पुलिस की सभी गाड़िया सड़क की ओर निकल पड़ी। तभी उन्हें एक जगह पर जमीन हटते हुए नजर आयी, आदित्य ने अपनी गाड़ी रोकी। उसके भीतर से वहीं कार निकली जिसमे अरुण सवार था, कार के कांच पर बना हुआ चिन्ह बहुत तेजी से चमक रहा था। सभी ने उस चिन्ह को देखा, वह चिन्ह जिसमें एक सर्कल के भीतर दूसरा सर्कल और उनके बीच एक स्टार तथा सबसे मध्य में एक फुंफकारता नाग था। अगले ही वह कार तेजी से भागते हुए सड़क पर पहुँच गयी। उस चिन्ह को देखते ही आदित्य का माथा ठनका, वह समझ गया कि हो न हो इसके भीतर वही है जो इन सभी घटनाओं के पीछे है। जो बच्चों के मौत और मेघा के घायल होने के पीछे है।

"सभी लोग उस कार का पीछा करो फौरन!" आदित्य चिल्लाया। पुलिस की सभी गाड़िया, अरुण की गाड़ी के पीछे लग गईं। "वह बचकर जाने न पाए!" कहते हुए आदित्य, मेघना को पास के हॉस्पिटल में लेकर जाने लगा।

"लो इनको तो पता ही नहीं कि ये भैया भी इन्ही की तरह चाल में फांसे गए थे। आखिर कितने प्लान के नीचे प्लान बना रखे हैं खाली स्थान ने? कुछ समझ ही न आ रहा।" अनि का दिमाग घूम गया था, वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वह कितना बड़ा खिलाड़ी है जो हर एक दांव पहले ही चल चुका है। अब तक उसे लग रहा था कि उसने पुलिसवालों को बचाकर उसका प्लान फैल कर दिया जबकि ऐसा बिल्कुल न था। सभी पुलिसवाले अब अरुण के पीछे हाथ धोकर पड़ चुके थे, उन्हें तो ये भी मालूम न था कि कार में वास्तव में कौन है।

क्रमशः...


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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Nov-2021 06:24 PM

बहुत खूबसूरत बहुत रोमांचक

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Niraj Pandey

09-Nov-2021 09:43 AM

बहुत ही रोमांचक

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🤫

08-Nov-2021 09:54 AM

बेहतरीन... मोड़ से गुजर रही है कहानी।

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